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Tuesday, May 14, 2024

हिन्दुस्तानी ताल से रसनिर्मिति

रसनिर्मिति हिन्दुस्तानी संगीत का स्थायीभाव है| स्वरों जैसा ताल भी रसनिर्मिति करनेवाला एक महत्वपूर्ण घटक है| गंभीर, शांत, करुण-दुःख यह रस विलंबित लय से प्रकट होते हैं| अतिआनंद, उत्सुकता, मनविभोरता जैसे रस द्रुतलय से प्रकट होते हैं| रसनिर्मिति के लिए पोषक लय का प्रकटीकरण उत्तम तबलावादक कर सकता है| विवक्षित मात्रासंख्यावाले तालोंद्वारा विविध लयों के आधारपर प्रस्तुत होनेवाला स्वतन्त्र तबलावादन प्रभावशाली रसनिर्मिति कर सकता है, यह हम नित्य रूप से देखते हैं| विलंबितलय में प्रस्तुत होनेवाला पेशकार तबलावादक के मन में उमड़ती असंख्य कल्पनाओं को प्रकट करते हुए भी अपना शांत स्वरूप छोड़ता नहीं, यही इस बात की पुष्टि देता है| द्रुतलय के चक्करदार तोड़े, गत-परन, गत–मुखड़े, रेले हमें आनंद की चरम सीमा तक ले जाते हैं, यह भी सत्य है| दक्षिणात्य कृति अथवा पश्चिमी सिम्फनी का सादरीकरण एक तरफ, और अपनी बुद्धिनिष्ठा से हिन्दुस्तानी संगीत कलाकार ने की हुई मनघडाई देखने-सुनने के बाद इन सब में रसनिर्मिति के लिए हिन्दुस्तानी संगीत कितना परिणामकारी सिद्ध होता है, इस बात का पता चलता है| इसी पद्धति का एक आवश्यक और महत्वपूर्ण भाग यानि तबलावादन की कला भी स्वतन्त्र रूपसे रंजनक्षम है, यह भी सिद्ध है|....................................................................................................................................................... ‘श्रुतिर्माता लय:पिता' ............................................................................................................................................................................................................................................................................................................... इस उक्ति के अनुसार उत्कृष्ट गायक-वादक स्वर-लय के उत्कृष्ट मिलाफ से प्रतिसृष्टि का निर्माण करते हैं| इन्हीं माता-पिताओं के आश्रय में उनका स्वच्छंद विलास महफ़िल में प्रकट होता है| तालवाद्यवादक भी इन्हीं माता-पिताओं का आधार का लेते हुए साथ-संगत हो, या स्वतन्त्र वादन, सुन्दर छोटे-बड़े मुखड़ों-टुकड़ों से, या कायदे में से प्रमाणबद्ध हरकतों के प्रयोग से समपर आते समय उत्कंठा और परिपूर्ति की शृंखलाएं रसिकों के समक्ष प्रस्तुत करते हैं| लय को तालबद्ध करके उसमें से विभाग, ताली, खाली इन योजनाओं के द्वारा सुगमता निर्माण होती है| इस सुविधा के कारण ही गायक या स्वरवाद्य वादक अपनी कला लोकाभिमुख कर सकते हैं| इसी सुविधा के आधार से गायक या वादक ‘हम कहाँ हैं? का निश्चित स्थान’ समझ सकते हैं| उनके सही ‘अंदाज’ से ‘समपर’ आने की उनकी सौन्दर्य दृष्टि का प्रत्यंतर रसिकों को आता है| संगीतका प्राण लय में ही समाविष्ट होता है| अगर लय का अंदाज न हो तो स्वरों की उच्छ्रुन्खल सृष्टि में कलाकार भटकता रहेगा| विलंबित, मध्य एवं द्रुत लय के आधार पर ही स्वरों का कल्पनाविलास क्रमश: होते रहता है| ख्याल सजता रहता है| .................................................................................................................................................................... रुक्ष गणित, पर अचम्भित कलाविष्कार ............................................................................................................................................................................................................................................................................................................... एक दृष्टी से देखा जाएँ तो गणिततत्व पर आधारित तालव्याकरण, प्रस्तारविधि और हररोज अनेक घंटों की पसीना निकालनेवाली मेहनत की अपेक्षा करनेवाला यह संगीत का अत्यंत रुक्ष प्रकार है| परन्तु संख्याओं का यह व्याकरण प्रखर मेहनत से और दूरदृष्टी से करने के बाद जो अचंभित कर देनेवाली कला उत्पन्न होती है, उसे दुनिया की किसी भी कला से भी उच्च स्थान मिला है| हाथ की केवल दो-तीन उँगलियों का प्रयोग करके तबले के वर्णों का निकास होता है| अधिक जोर के लिए भी कभी पूरे हाथों का ढोल की तरह प्रयोग नहीँ होता| दायाँ-बायाँ हाथ कभी भी विवक्षित ऊंचाई के ऊपर जाता नहीं| होठों को चबा कर, चेहरेको विद्रुप बनाकर कभी तबले पर टूट पड़नेवाला दृश्य दिखता नहीं| वादक के वीरासन में या सीधी बैठक में भी कभी अंतर नहीं पड़ता| अनभिज्ञों को इस कठोर तपस्या की कभी कल्पना नहीं होती| उससे उत्पन्न आनंद का वह एक सहचारी मात्र होता है|

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