Pages In This Blog

Sunday, April 16, 2023

How many Ragas can be created Mathematically in Hindustani Music?

 

 

गणित द्वारा एक ठाट से अधिक से अधिक कितने रागों का निर्माण हो सकता है?

गणित के द्वारा एक ठाट से अधिक से अधिक ४८४ रागों कि निर्मिति हो सकती है.

राग की तीन प्रमुख जातियाँ होती हैं, जो सबको विदित है. ओड़व, षाडव तथा सम्पूर्ण. इनके मिश्रण से आगे ९ जातियाँ हो जाती हैं, जो औडवऔडव, औडवषाडव, औडवसम्पूर्ण, षाडवऔडव, षाडवषाडव, षाडवसम्पूर्ण, सम्पूर्णऔडव, सम्पूर्णषाडव तथा सम्पूर्णसम्पूर्ण कहलाती है.

ठाट से राग निर्मिति की विधि को समझने के लिए अब बिलावल ठाट का उदाहरण लेंगे. इस ठाट के सब स्वर शुद्ध होते हैं. सर्वप्रथम हम तीन मुख्य जातियों को देखेंगे.

१.      सम्पूर्ण जाति का केवल एक आरोह बन सकता है. इसका कारण स्पष्ट है, कि ठाट में सात ही शुद्ध स्वर होते हैं. सम्पूर्ण जाति के रागों में सातों स्वरों का प्रयोग होता है.

२.      षाडव जाति के आरोह में छह स्वरों का प्रयोग होता है. इसीलिए प्रत्येक राग के आरोह में षड्ज छोड़ कर बारी बारी से एकएक स्वरों को छोड़ते जाना है. सा के अतिरिक्त सप्तक में छह स्वर होते हैं, इसीलिए ऐसे छह आरोह बन जाएंगे. इसमें पहले रे, फिर ग, फिर म इस तरह एकएक स्वर छोड़ा जा सकता है. जैसा आरोह वैसा ही अवरोह होगा.

३.      औडव जाति के आरोह में पांच स्वर होंगे. सप्तक में सात शुद्ध स्वर होते हैं, इसीलिए औडव जाति के प्रत्येक राग में बारीबारी से दो दो स्वर छोड़ते जाएँगे. इन स्वरों की पन्द्रह जोड़ियाँ हो जाती हैं, जैसे रेग, रेम, रेप, रेध, रेनी, गम, गप, गध, गनी, मप, मध, मनी, पध, पनी, धनी. इस तरह औडव जाति के पंद्रह अवरोह बन जाएँगे. प्रत्येक बार सप्तक से इन जोड़ियों को क्रमशः निकालते जाएँगे, तो फलस्वरूप पंद्रह रागों की रचना होगी. उदाहरण पहले राग का आरोह सा .. म प ध नी सां, दूसरे का सा .. ग प ध नी सां वगैरह. जो स्वर आरोह में होंगे वही अवरोह में होंगे.

यहाँ पर केवल तीन जातिओं के रागों पर विचार हुआ. जब नौ जातिओंके रागों की निर्मिति पर विचार करेंगे तो इस विधि से चलना होगा...

१.      सम्पूर्ण षाडव जाति के छह राग होंगे. प्रत्येक राग में आरोह एक ही होगा क्यों कि प्रत्येक का आरोह सम्पूर्ण है, परन्तु अवरोह क्रमशः बदलते जाएँगे. यहाँ पर षाडव जाति के छह अवरोह जो बनते हैं, उनको एकएक आरोह में क्रमशः जोड़ते जाना है.

२.      सम्पूर्ण औडव जाति के पंद्रह राग निर्माण हो जाते हैं. इन रागों में भी आरोह नहीं बदलेगा. अवरोह क्रमशः बदलता जाएगा. औडव जाति के पंद्रह अवरोह जो निर्माण हो सकते हैं, उन्हें क्रमशः जोड़ते जाने से ऐसे पंद्रह अवरोह निर्माण होंगे. उदाहरण के लिए प्रथम अवरोह में रे ग वर्जित होंगे अर्थात अवरोह सां नी ध प म .. .. सा हो जाएगा. इसी प्रकार दूसरे अवरोह में रे म स्वर वर्जित करके सां नी ध प .. ग .. सा ऐसा हो जाएगा. बारीबारी से ऐसे पंद्रह अवरोहों से सम्पूर्ण आरोह जोड़ देने से पंद्रह राग बन जाएँगे.

३.      षाडव षाडव जाति के छह गुना छह ऐसे छत्तीस राग बन जाते हैं. प्रत्येक राग में बारी बारी से सा को लेने के बाद एक एक स्वर को छोड़ते जाएँगे. जैसा आरोह वैसा ही अवरोह होगा. षाडव जाति के प्रथम आरोह को रे वर्जित करके क्रमशः छह अवरोहों से जोड़ते जाएँगे. इस प्रकार इस प्रथम आरोह के मिश्रण से छह राग निर्माण हो जाते हैं. अब दूसरे आरोह में ग वर्जित करने से बाकी सारे अवरोहों को जोड़ देने से और छह राग निर्माण हो जाते हैं. इसी प्रकार तीसरे, चौथे, पाँचवे तथा छठवे स्वर को छोड़ कर आरोह बनाने से तथा बाकी छह अवरोहों से मिलाने से प्रत्येक मिलाफ से छह गुना छह अर्थात छत्तीस राग निर्माण हो जाते हैं.

४.      षाडव औडव जाति के इसी गणित के आधार पर छह गुना पंद्रह अर्थात नब्बे राग निर्माण हो जाते हैं. इनमें भी बारी बारी से प्रत्येक आरोह को अवरोहों से मिलाना होता है. षाडव जाति के छह आरोह और औडव जाति के पंद्रह आरोह हो जाते हैं. प्रत्येक आरोह को पंद्रह अवरोहों से जोड़ देने से अलग अलग रागों का निर्माण हो जाता है. नीचे यह सारिणी देखने पर रूप स्पष्ट हो जाएगा.

षाडव जाति के आरोह       औडव जाति के अवरोह

१.      सा ग म प ध नी      नी ध प म ग .. सा

२.      सा ग म प ध नी       नी ध प .. ग .. सा

३.      सा ग म प ध नी       नी ध .. म ग ..सा

४.      सा ग म प ध नी       नी ..प म ग .. सा

५.      सा ग म प ध नी       नी  .. प .. म रे सा

६.      सा ग म प ध नी       नी ध प .. .. रे सा

७.      सा ग म प ध नी       नी ध .. म .. रे सा

८.      सा ग म  प ध नी      नी ध .. म ग .. सा

९.      सा ग म प ध नी       .. ध प म .. रे सा

१०.   सा ग म प ध नी       नी ध .. .. ग रे सा

११.   सा ग म प ध नी       नी .. प .. ग रे सा

१२.   सा ग म प ध नी       .. ध प .. ग रे सा

१३.   सा ग म प ध नी       नी .. .. म ग रे सा

१४.   सा ग म प ध नी       .. ध .. म ग रे सा

१५.   सा ग म प ध नी       .. .. प म ग रे सा

यहाँ पर सारे रूप स्पष्ट हो जाते हैं. अब आरोह के क्रम में षाडव का दूसरा आरोह, जिसमें ग वर्जित है, उसे लेकर सारे पंद्रह अवरोहों से क्रमशः जोड़ेंगे तो षाडव औडव जाति के अन्य पंद्रह राग निर्माण हो जाते हैं. इसी तरह क्रमशः एकएक स्वर छोड़ देने से तथा औडव के पंद्रह अवरोहों से जोड़ने से प्रत्येक बार पंद्रह रागों कि निर्मिति हो जाएगी. कुल ऐसे नब्बे राग बन जाते हैं.

५.      षाडव सम्पूर्ण जाति के छह राग बन जाते हैं. छह प्रकार के आरोह बन जाते हैं, परन्तु अवरोह वही रह जाता है.

६.      औडव सम्पूर्ण जाति के पंद्रह रागों की रचना हो जाती है. इसमें हरेक में आरोह बदलता रहता है, अवरोह नहीं बदलता. औडव जाति के पंद्रह राग बनते हैं, इसीलिए औडव सम्पूर्ण जाति के पंद्रह राग बन जाते हैं.

७.      औडव षाडव जाति के पंद्रह गुना छह यानि नब्बे रागों की रचना हो जाती है. औडव जाति के पंद्रह आरोह तथा षाडव जाति के छह अवरोह बनते हैं. इन्हीं के मिलाफ से उसी विधि के अनुसार नब्बे रागों की निर्मिति हो जाती है.

८.      औडव औडव जाति के पंद्रह गुना पंद्रह यानि दो सौ पच्चीस राग बन जाते हैं. अभी तक की गयी विधि के अनुसार यह रचना हो जाती है.

इसी प्रकार कुल मिलाकर निचे दिए गए तक्ते के अनुसार रागों की संख्या देख सकते हैं

१.      सम्पूर्ण सम्पूर्ण               

२.      सम्पूर्ण षाडव                

३.      सम्पूर्ण औडव                १५

४.      षाडव सम्पूर्ण                 

५.      षाडव षाडव                  ३६

६.      षाडव औडव                  ९०

७.      औडव सम्पूर्ण                 १५

८.      औडव षाडव                   ९०

९.      औडव औडव                  २२५

कुल मिलाकर रागों की संख्या    ४८४ बन जाती है.

गणित के द्वारा एक ठाट से अधिक से अधिक ४८४ राग निर्माण हो जाते हैं. अगर दस ठाट का हिसाब लगाया जाएँ तो ४८४० यह संख्या हो जाती है. राग की व्याख्या पर अगर ध्यान दिया जाएँ तो इतनी संख्या के सभी राग गाएँ जाना संभव नहीं है. ‘’रंजयते इति राग:’’ इस वाक्य पर ध्यान दिया जाएँ तो इस कसौटी पर यह संख्या उतर सकती है क्या? उत्तर ‘’नहीं’’ आएगा. यह बात भी ध्यान में लानी चाहिए की वादी संवादी बदल देने से भी राग बदल जाते हैं. तब रागों की संख्या बढ़ सकती है. ऐसे होने पर भी प्रचार में अधिक से अधिक दो सौ राग हो सकते हैं, इससे अधिक नहीं.