हिंदुस्तानी
तथा कर्नाटक संगीत की कुछ रंजक बातें
अपने
देश का संगीत, यहाँ की सांस्कृतिक परंपरा प्राचीन है। पुराणकाल में लिखे गएँ
रामायण, महाभारत सहित अन्य ग्रन्थों में वीणा, पटह, भेरी, शंख, पणव, आनक, गोमुख जैसे अनेक वाद्यों के नाम पढ़ने
को मिलते हैं। यद्यपि पुराणकाल का समयकाल ईसवीपूर्व वर्षों में बता नहीं सकते,
परन्तु यह तो सामान्य तौर पर समझ में आता है, कि विश्व के अन्य देशों की तुलना में अपने देश का संगीत अधिक पुराना,
तथा शास्त्राधारित है। भगवान कृष्ण के होठों पर बांसुरी,
माता सरस्वती के हाथ में वीणा, भगवान शंकर की नृत्य मुद्रा तथा उनके हाथ में
डमरू, नारद जी के गले में वीणा, उसी प्रकार अनेक कथाओं में उल्लेखित अनगिनत
वाद्य और सामगायन के उल्लेख देख कर उसका महत्व अधोरेखित होता है। हजारो वर्षों से
खड़े प्राचीन शिल्प भी इसी महत्व को दोहराते हैं। नृत्यों में उपयोगी हस्त मुद्राएँ,
पदन्यास तथा वस्त्र और आभूषण, विविध वाद्य, बजानेवाले कलाकार,
राजाओं के दरबार, वहाँ सुननेवाले लोग यह सारी बातें हमें आज भी ऐसे शिल्पों में देखने
को मिलती हैं।
विश्व
के हरेक देश की अपनी अपनी धरोहर है। इजिप्त, मेसापोटेमिया, रोम, ग्रीस, अझटेक, चीन, माया जैसी प्राचीन संस्कृतियाँ संगीत
के विकास के लिए भी जानी जाती है। अरेबियन प्रथा के अनुसार बुलबुल को ईश्वर ने
स्वर्ग से धरती पर संगीत प्रसार के लिए भेजा है। विश्व के सारे विज्ञानियों के
अनुसार संगीत का उगम निसर्ग से ही हुआ है। आजका पाश्चात्य संगीत इन्हीं विविध
संगीत पद्धतियों का अनुसरण करके लोकप्रिय बना है।
पर्शियन
संगीत को ‘मुकामात फ़ारसी’ कहा जाता
है। पर्शियन धारणा के अनुसार देवदूतों ने संगीत की खोज की है। दुनिया के अन्य
लोगों ने उसे उन्हीं से अपनाया है। वाद्यों की खोज तत्वज्ञों ने की है यह भी वहाँ
माना जाता है। जैसे प्राचीन हिंदुस्तानी संगीतशास्त्र में छह मूल रागों का
सिद्धान्त था, वैसे पर्शियन संगीत बारह वर्गों में बंटा है, जिन्हें ‘मक़ाम’ कहा जाता है। उसी
प्रकार उसी में से दो ‘शोबूह’ तथा चार ‘गोशूह’ बनते हैं। ‘मक़ाम’ हिंदुस्तानी रागों से, ’शोबूह’ रागिनीओं से तथा ‘गोशूह’
पुत्र और उनकी भार्याओं से मेल खाते हैं। अभ्यासकों को ज्ञात होगा कि प्राचीन
भारतीय संगीतशास्त्र में षट्पुरुष राग, उनकी भार्याएँ तथा
उनके पुत्र और पुत्रवधुओं का वर्णन मिलता है।
Latin
भाषा
में संगीत को मूसीका Mousica
कहा जाता है, यूनानी में मौसिकी Mousike, फ्रांसीसी में मूसिक Mousique, पोर्तुगीज में
मूसीका Musica, जर्मन में मुसीक Musik तथा
इंग्लिश में म्युझिक Music इन शब्दों में संगीतकला को जाना
जाता है।
संगीत क्या है?
गायन, वादन तथा नर्तन को संगीत कहा जाता
है। स्वर, लय तथा ताल
यह
तीन बातें इसमें समान होती हैं। इन तीनों के साथ जब शब्दों का मिलाफ़ हो जाता है तो वह
गीत बन जाता है। कविता जब सुरों के साथ बँधी जाती है तब दूध में शक्कर जैसी उसकी
मिठास बढ़ जाती है।
एक बंदिश में संगीत के महत्व के बारे में गाया
गया है,
जग में अगर संगीत न होता
कोई किसी का मीत न होता
ये अहसान है सात सुरों का
के दुनिया वीरान नहीं।।
हिंदुस्तानी
संगीत की तालपद्धति मात्राओं की संख्या पर निर्भर है। जैसे चार मात्राओं का कहरवा, छह
मात्राओं का दादरा, सात मात्राओं का रूपक, आठ मात्राओं का धुमाली,
कव्वाली, या आधा वगैरह।
गायक
या वादक को हर समय हाथ से ताल दे कर अपनी प्रस्तुति देने की कोई जरूरत नहीं होती।
ताल-लय पर अधिकार हो तो तालवाद्य बजानेवाले की ओर देखते हुए गाने की भी जरूरत नहीं
पड़ती। हस्तक्रिया होनी ही चाहिए, ऐसी बात भी नहीं होती।
परन्तु
अगर आप कर्नाटक संगीत का कार्यक्रम सुन रहे हैं, तो यह हस्तक्रिया आप जरूर देखेंगे।
गायन करनेवाले कलाकार अपनी प्रस्तुति के साथ-साथ अपने ताल के ‘आघात’
यानि सशब्द तथा नि:शब्द क्रियाएँ अवश्य दिखाएंगे। इतना ही नहीं, हर मात्रा का हिसाब भी दर्शाएंगे। उसी
क्रिया का यथास्थित पालन मृदंग, घट, मुर्सिंग या कंजिरी वादक करते हुए आप देख पाएंगे।
पूरे समय उनका यह कार्य बिना रुके चलता है। एक तालवादक के ‘तनियावर्तन’ के समय अन्य वादक तथा गायक भी केवल हस्तक्रिया
करते हुए, उसे प्रोत्साहित करते हुए आप देख पाएंगे। गानेवाले की ‘कृति’ की सारी लयप्रक्रिया तालवाद्य वादक अपने हिसाब
से हूबहू पुनरावर्तित करते हैं। इसे श्रवण करना एक अद्भुत अनुभव होता है। यहाँ पर
सारे तालवाद्यों का अनोखा नादगुण तथा वादक का कौशल्य श्रोतागण देख और सुन पाते
हैं। सबका हुनर यहाँ पर कसौटी पर उतरकर आता है।
प्राचीन
काल में अपने हाथ की उँगलियों पर स्वरस्थान निश्चित किए गएँ। हाथ के पंजे को वीणा
का रूप दे कर हर उँगलियों के विभागों पर सप्त स्वर स्थापित करने के कारण हाथ के
पंजे को ‘गात्रवीणा’ यह नाम दिया
गया। वेदों की ऋचाओं का गायन अँगूठे से उँगलियों के विभागों पर स्पर्श से
स्वरदर्शित किया जाता था। यज्ञसमय पर साम गायन किया जाता था। इसी में ‘’मार्गी संगीत’’ का उद्गम था। ‘’मोक्षमार्गं निगच्छति’’ यही संगीत का उद्देश्य हुआ
करता था। अधिक तर यह यज्ञ करनेवाले पुरोहितों तक ही सीमित था। दूसरी ओर केवल संगीत
को अपनानेवाला एक विशिष्ट वर्ग था, जिसे ‘गन्धर्व’ कहा जाता था। उनके साथ अप्सराएँ हुआ करती
थी जिनका जीवनकार्य नृत्य था। यक्ष, किन्नर तथा गन्धर्व
स्वर्ग में देवों के मनरंजन के लिए नियुक्त थे। इनको अतिमानवी रूप मिला था। कश्यप
मुनि पिता तथा रवसा, मुनि, क्रोधा, विश्वा यह उनकी माताएँ थी। कालान्तर से यह समाज संगीत कला का व्यवसायी बन
गया। अपनी रूढ़ि परम्पराओं के अनुसार जो लोकसंगीत समाज में था उसे ‘’देसी संगीत’’ कहा गया। रामायण काल से ही राजदरबारों
में ‘गन्धर्व’, ‘सूत’, ‘मगध’, ‘बन्दी’, ‘नर्तिका’, ‘वारांगना’ आदि समाज के घटक
संगीतव्यवसायी थे। राक्षसराज रावण अत्यन्त उच्च कोटी का संगीत मर्मज्ञ तथा कवि था।
उस काल में विपंचि, वल्लकी, काण्ड वीणा, कर्करी, कौपशीर्षा, अवधारित नामक
वीणाप्रकार, डिंडिम, मृदंग, नूपुर, आडम्बर, करताल, दुंदुभि, पटह, भेरी, पणव, मगज, कुम्भ, चेलिका, शंख, मंड़ुक जैसे
अलग-अलग वाद्य प्रचलित थे। वेणु, बाकूर, तूणव, गोधा, नली, सुणव, भारधुनि, जैसे सुषिर
वाद्य थे। द्रवप, भूदुंदुभी, गर्गर, केतुमत, विंधगज्य जैसे अवनध वाद्य थे। संगीत के
प्रात्यक्षिक से धन प्राप्ति का उद्देश नहीं होता था। लव-कुश को अपने गुरु
वाल्मिकी से रामकथा गायन से धन-कांचन की स्वीकृति न करने की आज्ञा थी। रामायण काल
के लेखन में स्वर, लय, ताल, मूर्च्छना आदि अनेक शब्दों का जिक्र है।
महाभारत काल में संगीत की अधिक उन्नति हो गई।
राजा महाराजाओं की प्रशंसा ‘गाथा संगीत’ इस प्रकार में
आती थी। समाज के सारे घटक संगीत की शिक्षा लेते थे। नट,
नर्तक, गायक, वादक, सूत, मगध, कथावाचक ऐसे कलाकारों
के विभाग थे। श्रीकृष्ण की बांसुरी, अर्जुन का बृहन्नला के
रूप में नृत्य ये उस समय के उच्च संगीत के उदाहरण है। सारेगम आदि सप्तस्वर, ग्राम, मूर्च्छना, स्वरस्थान, लय आदि शब्दों के प्रमाण महाभारत में मिलते हैं।
उसी प्रकार पुराण ग्रंथों में भी संगीत के
अनेक सन्दर्भ हैं। वायुपुराण में सप्तस्वर, इक्कीस मूर्च्छनाएं, तीन ग्राम, उनचास तान के प्रकार आदि का उल्लेख है।
उसी तरह मार्कण्डेय पुराण में भी गायन, वादन तथा नर्तन का
विवेचन है।
Good information 👍, Nandan, on music from different regions of the world
ReplyDeleteThanks Madhav for your appreciation.
Deleteकिती अभ्यासपूर्ण लेख आहे! खूप आवडला..
ReplyDeleteधन्यवाद चित्कला कुलकर्णी.
DeleteToo good and very very informative
ReplyDeleteThanks so much!!!
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